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भारतीय वाड़्मय के अनंत आकाश में राम एक जाज्वल्यमान नक्षत्र की तरह द्युतिमान है, जिसकी प्रकाशराशि ने समस्त समाज को सदैव आलोकित किया है। वेद परंपरा से लेकर अद्यतन चिंतन धारा के केंद्र में कहीं न कहीं राम की प्रतीच्छाया दिख जाती है। गांधी के राम, निराला के शक्तिपूजक राम, कबीर के निर्गुण राम, या तुलसी के भक्तवत्सल राम अथवा मैथिलीशरण के साकेत पति राम आदि विभिन्न धाराओं की उर्मियों में छलकते सरल स्वाभविक राम सरल रामायण में विश्राम करते प्रतीत होते हैं। कवि हृदय श्री कैलाश परवाल 'सरल' ने गोस्वामी तुलसीदास जी की अदृश्य प्रेरणा शक्ति को धारण कर रामकथा को सरल हिंदी भाषा में निबंद्ध कर राम को जन मानस में उतारने का स्तुत्य प्रयास किया है। ऐसे कवियों को महाकवि तुलसी ने भी प्रणाम किया है =============================== कल ही के कविन्ह करउँ परनामा। जिन्हें बरने रघुपति गुन ग्रामा।।
आचार्य पीयूष वृंदावन
श्री कैलाश परवाल ''सरल'' के द्वारा रामजी के जीवन पर शब्द चित्रण अद्भुत है। श्रीराम भारतीय जन मानस की धड़कन है। राम जैसा व्यक्तित्व दुर्लभ है। इस दुर्लभ व्यक्तित्व पर कलम चलाकर कैलाश जी ने केवल अपने को धन्य किया है वरन् आने वाली पीढ़ियों को भी धन्य कर दिया है। हर आदमी के सामने दो विकल्प होते है। वह या तो इतिहास रचे या फिर इतिहास में खो जाए। कैलाश जी ने पहले विकल्प को चुना और वे इसमें सफल हुए। उनके इस उत्तम प्रयास के लिये उन्हें बहुत-बहुत आशीर्वाद।
मुनि तरूणसागर
प्रिय श्री कैलाश चंद्र परवाल जी,
नमस्कार
आपके द्वारा रचित सरल रामायण की प्रति प्राप्त हुई धन्यवाद!
भगवान राम की कथा युगों से लेखकों का प्रिय विषय रही है। संस्कृत और अवधि में रामकथा रामायण और रामचरितमानस के रूप में पहले से विद्यमान है। ऐसे में हिन्दी भाषी पाठकों के लिए उनकी भाषा में प्रयास अपेक्षित था। अपने नाम के अनुरूप 'सरल रामायण' सरल हिन्दी भाषा में राम की कथा पाठकों तक पहुंचाती है।
यह प्रशंसनीय प्रयास है। मैं इस पुस्तक के लेखन हेतु आपको हार्दिक बधाई देता हूँ तथा अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।
ओम बिरला
मुझे आज बहुत प्रसन्नता हो रही है कि श्री कैलाश परवाल सरलजी से सरल, सरस मातृभाषा में रामायण की रचना की है। मैं आशा करती हूँ कि हमारे देश ही नहीं अपितु सारे विश्व के अन्दर हिंदू संस्कारों से जिनका हृदय सिंचित हुआ है और जिनके हृदय की भूमि बंजर है और जिनको इन संस्कारों की मेह की, नेह की, एवं मेघ की आवश्यकता है, वह इस सरल रामायण से पूरी होगी। मैं अपेक्षा करती हूँ कि अधिकाधिक लोग इस सरल रामायण को पढ़ें, सुने और गायें। हममें से बहुत से लोग सुविधाओं के बीच में तो हैं। परंतु सुख से कोसों दूर है, उनके लिए यह सुख-मणि है सरल रामायण ।
साध्वी ऋतंभरा
वाल्मीकि रामायण की तुलसीदास जी ने तत्कालीन प्रचलित जन-भाषा में पुनर्रचना की, आज उसी का परिणाम है कि पूरा उत्तर भारत एक सूत्र में बंधा हुआ है।
ऐसे में आज की बदली हुई भाषा में श्री कैलाश परवाल 'सरल' द्वारा सरल रामायण के रूप में रामायण की पुनर्रचना की गई है।
इसके लिए श्री सरल धन्यवाद के पात्र हैं।
मुझे अत्यधिक हर्ष है कि रामकथा का यह पावन ग्रन्थ सरल रामायण जिसे सरलता से समझा जा सकता है। निश्चित ही प्रेरणादायक एवं आनन्ददायी है।
श्री श्री रविशंकर जी
रामायण की सीता एवं महाभारत की गीता हमारी संस्कृति है। जीवन में रामायण एवं जीवन को रामायण बनायें अर्थात जीवन को सरल बनायें। रामायण है ही सरल। फिर सरल रामायण तो सरलता की पराकाष्ठा है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में जहाँ भी भारतीय हैं, उनके जीवन को रामायण ने ही दिशा एवं संस्कार दिए हैं। यदि आज भी भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में जहाँ भारतीय है वहाँ आप पायेंगे कि रामायण मंडलियों द्वारा प्रत्येक सप्ताह रामायण का पाठ वहाँ नियमित रूप से होता है।
मैं, सरल रामायण के रचनाकार श्री कैलाश परवाल जी सरल को शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ और कामना करता हूँ कि यह रामायण पूरे विश्व में घट-घट की सरल रामायण होगी।
स्वामी चिदानंद जी सरस्वती जी
भगवान के पालक स्वरूपों में भी परमप्रभु श्रीराम पर प्रशस्यतम हैं। अत एव संसार के सभी मानवों को सतत-जन्म से मृत्यु पर्यंत तथा अनन्य भाव से श्रीराम जी को ही गाना चाहिए। उपर्युक्त भावों को ही ध्यान में रखकर स्वान्तःसुखाए श्री कैलाश परवाल ''सरल'' ने रामायण की रचना की है। यह इनका प्रशस्त एवं अनुकरणीय अनुष्ठान है। परमप्रभु-सर्वावतारी श्रीरामजी सरलजी को अधिकाधिक गायन के लिए शक्ति प्रदान करें, जिसके माध्यम से इनको तथा समाज को संपूर्ण जीवन की प्राप्ति हो
रामनरेशाचार्य
यह बड़े आनंद की बात है कि सरल रामायण के नाम से रामकथा के एक नए काव्य की रचना की गई है। जहाँ सारे संसार में रावणी वृत्ति बढ़ती जा रही हो, राष्ट्रभाव समाप्त हो रहा हो, ऐसी परिस्थिति में इस प्रकार की सरल रामायण का प्रकाशन निश्चित रूप से राष्ट्र की ही सेवा है। मेरी दृष्टि में राम और राष्ट्र को अलग नहीं किया जा सकता। आज समाज में जिस प्रकार की विकृतियां उत्पन्न होती जा रही हैं उनको जानकर लज्जा से शीश झुक जाता है ऐसे कठिन काल में श्री कैलाश परवाल सरलजी ने सरल रामायण की जो रचना की है, उसमें समाज को प्रेरणा मिलेगी, सरल रामायण देश के 125 करोड़ लोगों को पुनः जागृत करेगी। इस पावन ग्रंथ के रचनाकार श्री कैलाश परवाल जी सरल को धन्यवाद एवं आशीर्वाद देता हूँ। परमात्मा करे कि उनके मन की सरलता सब लोगों के भीतर आए
स्वामी सत्यमित्रानंद
मैंने सरल रामायण का अध्ययन अपनी यात्राओं में दो तीन बार किया। मुझे इसका सबसे प्रभावी पक्ष लगा, जिस ईमानदारी से कैलाश जी ने श्रीराम के चरित्र को सरल भाषा में व्यक्त किया है वो उनकी सरल भक्ति का परिणाम है। इस साहित्य को पढ़ते हुये लगता है कि वाल्मीकि जी की जिस परम्परा को गोस्वामी तुलसीदास जी ने आगे बढ़ाया उसी परम्परा की अगली कड़ी कैलास जी बन गये। इस साहित्य में कुछ स्थान पर तो उन्हांेने गूढ़ सन्देश को बड़ी सरलता से व्यक्त किया है। और साहित्य इसलिए विशेष हो गया है कि इसमें उपदेश के पीछे के सन्देश को जब सरल भाषा में व्यक्त किया गया तो नई पीढ़ी के लिए सहज और सुलभ हो गया है। आज हमारे जितने साहित्य हैं, हम नई पीढ़ी तक कैसे पहँुचायें, ये सबकी चिन्ता है क्यांेकि नये बच्चे भाषा को लेकर थोडा सा संकोचित हैं। उनका भी कोई दोष नही है। शिक्षा का वातावरण ऐसा ही है। वो भाषा जो हिन्दी के रुप में हमारी मात्र भाषा है इस नयी पीढ़ी की दौड में पीछे छूट गई है। लेकिन सरल रामायण जैसे साहित्य से हिन्दी की सेवा तो है ही, मनुष्यता के हित के लिए भी एक प्रयास है। मैं कैलाश जी को बहुत बहुत धन्यवाद देता हँू कि उन्होंने अपनी योग्यता को परमात्मा को समर्पित करके भगवान के भक्तों को अर्पित किया है।
पण्डित विजय शंकरजी मेहता
श्री कैलाश चन्द्र परवाल कृत ''श्रीकृष्णम्'', 'सरल रामायण' के बाद एक और सशक्त साहित्यिक कृति है। सुन्दर से सुन्दर साहित्य भी तभी सुन्दर होता है, जब उसमें गुणानुवाद हो। अन्यथा वह तो कौओं के लिए उच्छिष्ट भोज्य ही है:-
'' न यद्वर्चाश्चत्रचदं हरेर्यशो
जगत्पवित्रं प्रगनीत जार्हिचित्।
तद्वायसं तीर्थगुशन्ति मानसा
न यत्र हंसा निरगन्त्यु शिवक्षयाः।।
यह ग्रन्थ सन्त-हंसों के लिए मानसरोवर सिद्व होगा।
शुभाकांक्षा सहित
आचार्य पीयूष
हिन्दी काव्य ग्रन्थ ''श्रीकृष्णम्''
हमारी प्रकाशमयी संस्कृति के साथ एक परिचय
भारत भूमि जिसकी मिट्टी मुह में रख कन्हैया श्रीकृष्ण हो गये, जिस माटी ने उद्धव से ज्ञानी को मूढ़ और एक अनपढ़ को राष्ट्रीय चेतना का स्वर देने वाला महाकवी कालीदास बना दिया उसकी यशोगाथा का परिचय वर्तमान पीढ़ी से आवश्यक है। श्री कैलाश परवाल ''सरल'' विरचित प्रस्तुत पुस्तक ''श्रीकृष्णम्'' में अभिव्यक्त लीला प्रसंग इस उद्देश्य को सार्थकता प्रदान करेेंगे। श्री परवाल द्वारा पूर्व में भी रामचरित मानस की चौपाईयों का सरल हिंदी भाषा में ग्रंथ लेखन किया गया है।
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरूषोतमः।।
प्रभु गोविन्द ने स्वयं गीता में अपने पुरूषोतम होने का रहस्य बताया है। उन पुरूषोतम की लीला माधुरी का श्रवण और अध्ययन दोनों ही अपने स्पंदन से सहज उत्प्रेरक के रूप में सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन मूल्यों को वांछित प्रशस्ति प्रदान करें, यही मेरी कामना है,
प्रभु गोविन्द अपनी सुधामयी प्रेरणा से आपके पवित्र प्रयास में सदैव आपको प्रेरित करते रहें।
गोविंद अनुरागी स्नेहिल मान्यवर
सच्चिदानंदरूपाय विश्रवोत्पत्यादिहेतवे।
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम।।
निखिल चराचर जगत के अंतर्यामी अनंतानंन्त ब्रह्मांडनायक करुणावरूणालय भगवान श्रीराधाकृष्ण की महिमा मन, बुद्धि और शब्द से परे है। फिर भी दीनहीन शरणागत निजभक्तों पर कृपा बरसाते हुए मंगलमय विग्रह धारण कर भगवान अनेक प्रकार की लीलाएँ करते रहते हैं। उन्हीं लीलाओं से भगवान की दिव्य महिमा का रसपान किया जाता है। भगवान की लीलाओं का गान करना, श्रवण करना और चिंतन करना भक्तियोग की उपासना पद्धति का अभिन्न अंग है। विद्वजन सर्वजनहिताय सरल भाषा में भगवान की लीलाओं का रसमय वर्णन करते हैं। जिससे सकल भावुक भगवद्भक्तों का कल्याण हो। प्रस्तुत ग्रंथरत्न ऐसे ही कल्याणकारी प्रयत्न का अनुपम उदाहरण है।
विद्वरेण्य श्री कैलाशजी परवाल ''सरल'' ने सरल हिंदी भाषा में श्रीरामचरितमानस की शैली में चौपाई एवं दोहे की रचना कर भगवान श्री राधाकृष्ण की मधुरातिमधुर दिव्य लीलाओं को काण्ड और अध्याय रूप पुष्पों से सुंदर माला का स्वरूप प्रदान किया है। आनंद श्री विभूषित जगतगुरु निंबार्काचार्यपीठाधीश्वर श्री श्यामशरणदेवाचार्य श्री ''श्रीजी'' महाराज ने प्रस्तुत ग्रन्थ का अवलोकन कर महती प्रसन्नता व्यक्त करते हुए साधुवाद के रूप में मंगलमय शुभ आशीर्वाद प्रदान किया है। प्रस्तुतग्रंथ से अध्ययनशील भावुक भगवत भक्त अवश्य लाभ प्राप्त कर सकेंगे। भगवान श्री राधासर्वेश्वर प्रभु से यही मंगलमय अभ्यर्थना है कि विद्वरेण्य श्री कैलाश जी परवाल 'सरल' को सुस्वास्थ्य एवं दीर्घायुष्य प्रदान करते हुए लोककल्याण के कार्याे में सदैव प्रेरित करते रहें।
हरिमोहन उपाध्याय
भगवान श्रीकृष्ण की जीवनगाथा पर आधारित 'श्रीकृष्णम्' काव्य की रचना पर श्री कैलाश परवाल को बहुत शुभकामनाएं। आशा है इसके द्वारा पाठकों को भक्त और ज्ञान की प्रेरणा प्राप्त होगी।
गुरूदेव श्री श्री रवि शंकर
'श्रीकृष्णम्' पुस्तक भगवान की दिव्य जन्म से वर्तमान काल तक की लीला-यात्रा का पूर्ण वर्णन करती है जिससे श्रोताओं को अतिसूक्ष्म रूप में सभी भगवत लीलाओं को स्मरण करने में अत्यधिक आसानी होगी।
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ।।
(श्रीमद्भगवद्गीता, 4.9)
कृष्णकृपामूर्ति भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद वर्णन करते है कि वह व्यक्ति जो कि भगवान के दिव्य जन्म एवं दिव्य लीलाओं को समझ सकता है वह संसार के बंधन से मुक्त ही है और वह इस सांसारिक शरीर को त्यागने के बाद तुरंत भगवत् धाम की पुनः प्राप्ति करता है। इस प्रकार की मुक्त साधारण जीव के लिए प्राप्त करना आसान नहीं है।
भगवान की प्रत्येक अद्भुत लीला हमारी मनोइच्छा को पूर्ण करने वाली है, यदि हम इन्हें सावधानी से सुनें। 'श्रीकृष्णम्' पुस्तक में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का छंदरूपी प्रस्तुतीकरण हमें भगवान लीला स्मरण एवं गान का अत्यन्त दुर्लभ अवसर अत्यधिक सरल शब्दों में प्रदान करता है।
'श्रीकृष्णम्' अतिसुन्दर चित्रण के साथ मनमोहक छन्द रूप में भगवत् लीलाओं का स्मरण कराने वाली अतिप्रबल पुस्तक है। श्रीमान डॉ. कैलाश परवाल 'सरल' की प्रगाढ़ कृष्ण भक्त एवं प्रचुर कृष्ण ज्ञान का यह एक और प्रतीक है। यह सभी सामान्य जन के लिए अतिमहत्वपूर्ण एवं उपयोगी रचना है।
रत्नांगद गोविंददास
सरल रामायण के लेखक डा0 कैलाश परवाल जी ''सरल'' को उनकी नई रचित उपलब्धि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित ''श्रीकृष्णम्'' सहज व सरल काव्य ग्रन्थ के अवलोकन पर आनन्दपीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित श्री श्री 1008 आचार्य महामण्डलेश्वर श्री स्वामी बालकानन्द गिर की ओर से हार्दिक शुभकामना एवं शुभाशीर्वाद।
भगवान श्रीकृष्ण का लीलामय जीवन अनेक प्रेरणाओं व मार्गदर्शन से भरा हुआ है। उन्हें पूर्ण पुरुष लीला अवतार कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन चरित्र मानव को धर्म, प्रेम, करुणा, ज्ञान, त्याग, साहस व कर्तव्य के प्रति प्रेेरित करता है।
महाभारत युद्ध में विचलित अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गीता का संदेश आज भी पूरे विश्व में अद्वितीय ग्रन्थ के रूप में मान्य है। श्रीकृष्ण ने राज्य भक्त के मद में चूर कौरवों के 56 भोग को त्याग कर के विदुर के यहाँ साग व केले का भोग ग्रहण कर विदुराणी का मान बढ़ाया।
द्वारका का राजा होने के बाद भी उन्होनें अपने बाल सखा सुदामा के तीन मुठ्टी चावल को प्रेम से ग्रहण कर उनकी दरिद्रता दूर कर मित्र धर्म का पालन किया।
डा0 कैलाश परवाल जी ''सरल'' ने भगवान श्री कृष्ण की सम्पूर्ण लीलाओं को सहज व सरल रूप से वर्णित किया है। उनके इस आलौकिक काव्य के माध्यम से समस्त मानव जगत को प्रेरणा मिलेगी। उनके इस आलौकिक काव्य के लिए भगवान श्री कृष्ण उन्हें आगे भी प्रेरित व पथ प्रदर्शित करते रहें। इसी शुभेच्छा के साथ।
स्वामी बालकानन्द गिर
श्रीमान् डॉ. कैलाश जी परवाल द्वारा विरचित ''श्रीकृष्णम्'' का किंचित अवलोकन किया। मन आनन्दित हुआ।
आज सम्पूर्ण विश्व में योगेश्वर (श्रीकृष्ण) के मुख से निःसृत ''गीता'' सम्पूर्ण जगत का सर्वोच्च सद्ग्रन्थ है। ''गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः''। गीता को जीवन का संगीत बनायें क्योंकि जो गीता में है वह सब जगह है जो गीता में नहीं वह कहीं नहीं है। क्योंकि (''या स्वयं पद्मनाभस्य मुख पद्माद्विनिःसृता'') भगवान पद्मनाभ के मुख से गीता प्रकट है। ऐसे योगेश्वर के चरित्र का चित्रण करना स्वयं श्री कृष्णजी की कृपा के बिना सम्भव नहीं है। श्रीमान् डॉ. कैलाश जी परवाल ने गद्यात्मक रूप में श्री गोविन्द कट्ट सुललित लीलाओं का अपनी लेखनी के माध्यम से हम सब को दर्शन कराने का प्रयास किया है। मेरी श्री कृष्ण चरणारविन्दांे में अनन्त अभ्यर्चना है कि श्री कैलाश परवाल जी पर अपनी कृपा दृष्टि बनाते हुए उन्हंे ऐसी रचनाओं के माध्यम से समाज एवं राष्ट्र सेवा का अवसर प्रदान कराते रहें।
कृष्णचन्द्र शास्त्री (ठाकुरजी)
सरल रामायण के सहज रचयिता कैलाश परवाल जी ने जब श्रीकृष्ण जैसे साहित्य के लिए अपनी कलम उठाई तो उसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने घोषणा कर दी थी कि मुझे यह सेवा स्वीकार है। और श्रीकृष्ण का आशीर्वाद इस पुस्तक की प्रत्येक पंक्ति में दिख रहा है।
श्रीराम जितने सरल हैं, श्रीकृष्ण उन्हें सरल नहीं है। दोनों की जीवन यात्रा भी बिल्कुल अलग है। राम महलों से चले, जंगलों में पहुँचे और ऊँचाइयों को छुआ। कृष्ण जंगल से चले, महलों में पहुँचे और उत्कर्षता हुई। दोनों के लिए लेखन हेतु किसी भी लेखक को बहुत गहराई में उतरना पड़ता है और कैलाश जी ने वैसा ही किया।
एक मात्र कृष्णजी का ऐसा अवतार है, जो अपने स्वरूप को लेकर अपने भक्तों को अत्यधिक स्वतंत्रता देते हैं। किसी ने श्रीकृष्ण को बाल मुकुंद माना, कोई गीता के श्रीकृष्ण पर टिक गया, किसी की रूचि महाभारत के श्रीकृष्ण में रही। इन तीनों रूपों को कैलाश जी ने बहुत सुंदर ढंग से अपने शब्दों में लिखा है। भागवत के बालमुकुंद प्रत्येक पंक्ति में बड़े प्रभाव के साथ लिखे गये हैं। गीता के कृष्ण को तो पूरे चिंतन के साथ प्रस्तुत किया है। महाभारत के श्रीकृष्ण के लिए बहुत स्पष्टता के साथ लेखनी चली है।
मैं कैलाश जी को बधाई देता हूँ कि उनकी श्रीकृष्ण-सेवा अनेक भक्तों को चिंतन के स्तर पर स्पष्टता देगी एवं स्वच्छता और सरलता प्रदान करेगी।
पंडित विजय शंकर जी मेहता
जय श्री बिहारी जी की
प्रिय कृष्ण भक्तों,
मुझे डॉ. कैलाश परवाल 'सरल' द्वारा रचित महाकाव्य ''श्रीकृष्णम्'' के अवलोकन का शुभ अवसर प्राप्त हुआ। ''सरल'' की सरल शैली अत्यंत रोचक है और बिहारी जी की संपूर्ण कथा को काव्य मोतियों में इस प्रकार पिरोये हुए हैं कि ठाकुर जी के भक्तों को इसका पठन-पाठन अत्यंत सरल, रूचिकर एवं गेय प्रतीत हो। डॉक्टर सरल विरचित रामायण के अंश भी मैंने पढ़े। इसकी रचना भी अद्वितीय है।
''सरल'' के दोनों ग्रंथों पर बिहारी जी का आशीर्वाद बना रहे और अधिक से अधिक भक्त इससे लाभान्वित हो इसी शुभाशंसा के साथ।
ज्ञानेंद्र आनंद किशोर गोस्वामी
योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण एक ऐसा अद्भुत व्यक्तित्व है, जिनके जीवन की प्रत्येक घटना युग-युग में प्रासंगिक होकर सदियों से मानव सभ्यता का मार्गदर्शन करती चली आ रही है। बाल लीलाओं से लेकर जीवन के अंत तक उनके जीवन का प्रत्येक प्रश्न हमें आज भी समस्याओं के समाधान देता है। बात जब धर्म और सत्य को बचाने की हो तो उसे विपक्ष में खड़े अपनों से भी संघर्ष करने की सामर्थ्य योगेश्वर के गीतोपदेश में आज तक हम सब का मार्गदर्शन करती चली आ रही है। उनका जीवन दर्शन एक आदर्श जीवन शैली है। जिसे अपनाकर हम जीवन की पूर्णता को प्राप्त कर सकते हैं। उनके जीवन का एक-एक प्रसंग हमारे जीवन की सभी समस्याओं का समाधान है। हम श्रीकृष्ण को केवल पूजे ही नहीं बल्कि उनके चरित्र को अपने आचरण में उतारने का प्रयत्न भी करें। ईश्वरीय शक्ति के रूप में उन्होंने मानव शरीर इसलिए धारण किया था कि वे अपने लीलाएँ दिखाकर सामान्य मानव के भीतर भी असामान्य क्षमताओं को जागृत कर सकने का भाव पैदा कर सकें।
डॉ कैलाश परवाल 'सरल' ने अपनी कृष्ण भक्ति को सुंदर काव्य में पुस्तक 'श्रीकृष्णम्' का रूप देकर योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र को जन जन तक पहुंचाने का प्रयत्न किया है जो अति अभिनंदनीय है । मुझे विश्वास है कि उनकी यह रचना पाठकों को मंत्रमुग्ध करेगी।
दीदी मां साध्वी ऋतंभरा
परम भवदीय
श्री कैलाश जी परवाल,
आप द्वारा नवरचित काव्य 'श्रीकृष्णम्' सद् साहित्य सृजन की प्रतिभा को देखकर मुझे अत्यंत ही प्रसन्नता हुई। आपकी काव्य रचना सरल सुबोध ज्ञान गम्य सर्व जनोंपयोगी सिद्ध होगी। प्रभु श्रीकृष्ण के समस्त लीला प्रसंगों को एक साथ एकत्रित कर हिंदी भाषा में सरल, रसमय काव्यशैली में सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ''श्री कृष्णम् महाकाव्य'' के वृहद ग्रंथ की रचना की गई है।
आपकी ग्रंथ सृजन प्रतिभा निरंतर बनी रहे ऐसी गोवर्धनधरण प्रभु श्रीनाथजी से मेरी कामना है
शुभ आशीर्वाद सहित
श्री राकेश जी महाराज
शुभ आशीर्वाद हो त्रिलोकी-नाथ भगवान श्रीकृष्ण तीनों तापों को विनाश करने के लिए सदा प्रकट होते हैं। यह जड़ चेतनरूप सारा संसार भगवान नंदनंदन की ही कृपा से गतिशील है। हम सब प्रकाशमान, दयासागर तथा ईश्वर उन्हीं नंदनंदन का स्मरण सर्वतोभाव से सदा करते हैं।
उनकी ही इच्छा से क्षणभंगुर यह जगत जन्म लेता है, रहता है, परिणत होता है, बढ़ता है, क्षीण होता है तथा विनाश को प्राप्त होता है।
वह यह साकार ब्रह्मा अपनी लीला से भक्तों के हृदयों को आह्लादित करने के लिए समय-समय पर विविध कलाओं से प्रकट हो कर वैदिक संस्कृति, संस्कार तथा शास्त्र सम्मत मार्ग दिखाकर धाम को चला जाता है।
इस सगुण ब्रह्मा के चरित्रों के चित्रण की परंपरा में अनेक आचार्य हुए। इनमें ही एक तथा श्रीकृष्ण के परम भक्त डॉ. कैलाश परवाल महाभाग के द्वारा विरचित बाल, रास, मथुरा, द्वारका, हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ, कुरुक्षेत्र, ज्ञान और उत्तर कांडो मैं विभक्त छः सौ पैतालिस पृष्ठ वाला तथा श्रीकृष्ण के चरित्र को लिए महापुराण रूप 'श्रीकृष्णम्' आज ही स्थालीपुलाक न्याय से आदि से अंत तक देखा गया। वह यह ग्रंथ सरल भाषा में लिखित, अतिसुंदर, सभी चरित्रों का वर्णन करने वाला वैदिक सत्य-सनातन धर्म का प्रचारक तथा भक्तों के हृदयों को आह्लादक है। अतः इस ग्रंथ के कर्ता महाकवि को हमारी ओर से अनेक शुभ तथा हार्दिक आशीर्वाद है और शुभ कामना करता हूँ की यह परम पवित्र ग्रंथ अति शीघ्र ही महान प्रचार-प्रसार और विस्तार को प्राप्त करेगा।