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सभी राम भक्तों को मेरा नमन।

श्रद्धेय श्रीराम भक्त,
जय श्रीराम

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम युगों-युगों से जन-मानस में रचे बसे हैं। प्रभु श्रीराम की महिमा का गान महादेव शिव से लेकर जन-सामान्य तक एवं तब से आज तक, सभी के मन में एक नई शक्ति, नई ऊर्जा एवं नई चेतना का संचार करता रहा है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘साकेत’ में लिखा हैः

 

‘‘राम तुम्हारा वृत्त, स्वयं ही काव्य है। कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।।’’

आज से लगभग 500 वर्षों पूर्व पूज्य संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस की रचना की थी, जिसमें मूलतः अवधी भाषा का समावेश था। इससे पूर्व, रामकथाओं पर देव-भाषा संस्कृत में पठन एवं पाठन होता था। देववाणी में व्याख्यायित इस पावन कथा की जन जन की तत्कालीन वाणी में पुनर्रचना करके संत शिरोमणि श्री तुलसीदासजी ने रामकथा के संदेशों एवं उपदेशों को जनमानस तक पहुँचाने का अलौकिक कार्य किया था।

श्रीराम चरित मानस से मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ और तुलसीदासजी के इस अमर कृत्य ने मुझे उसी शैली में किन्तु वर्तमान में प्रचलित सरल, सरस एवं सुबोध हिन्दी शब्दों में राम-कथा को एक नवीन काव्य ग्रन्थ ‘रामायण’ के रुप में रचना करने हेतु प्रेरित किया।

यह निर्विवाद है कि हिन्दी भाषा आज हमारी सांस्कृतिक सीमाओं के एक बहुत बडे़ भू-भाग में सहज रुप से बोली एवं पढ़ी जाती है।

प्रस्तुत रचना ‘हिन्दी काव्य ग्रन्थ’ में मैंने काव्य मौलिकता का ध्यान रखा हैं, किन्तु गोस्वामीजी का सम्मान करते हुए, मैंने कुछ शब्द एवं उपमाएँ श्रीराम चरित मानस से ही ली हैं ताकि रामभक्तों को प्रस्तुत ग्रन्थ में तुलसीकृत रामकथा का ही अनुभव हो एवं इस कृति में बहने वाली रस धारा को वे तुलसीकृत रस धारा की ही शाखा मानें।

विभिन्न रामकथाओं में वर्णित प्रसंगों, प्रचलित मान्यताओं आदि को भी मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ में इस प्रकार स्थान दिया है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी यह कथा अधिकतम प्रासंगिक एवं प्रेरणादायी हो।

रामायण की रचना मैंने लगभग 10 वर्ष पूर्व की थी। तब से आज तक लगभग 40000 प्रतियाँ भारतवर्ष के कोने कोने तक ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के अनेक भागों में यह अपनी पहुँच बना चुकी है। यही नहीं इस ग्रन्थ के सुन्दर काव्य भाग के पाठ के विडिओ को यू-टयूब पर लाखों लोग अब तक देख चुके हैं।

ग्रन्थ की रचना करते समय सभी आयु वर्ग के पाठकांे की रुचि का ध्यान इस प्रकार रखने का प्रयास किया गया है कि रामकथा में वर्णित उपदेशों, संदेशों एवं प्रभु श्रीराम के मनुष्य रुप में संस्थापित आदर्शों को अधिक से अधिक लोग अपने जीवन में उतार सकें एवं आध्यात्मिक लाभ ले सकें।

मैं, कोई संत नहीं होकर, एक सामान्य सांसारिक व्यक्ति हूँ और इस रचना के माध्यम से जन-सामान्य को संदेश देना चाहता हूँ कि राम कथा के पठन, पाठन, लेखन, श्रवण आदि पर सभी का अधिकार है। मेरा उद्देश्य किसी भी रामभक्त, पाठक, कथाकार, लेखक आदि की भावनाओं को किसी प्रकार की ठेस पहुँचाना नहीं है, अपितु राम कथा का अधिकतम प्रचार प्रसार करना है।

मैं सभी रामभक्तों को करबद्ध निवेदन करता हूँ कि वे इस पावन ग्रन्थ ”रामायण” के प्रचार प्रसार में यथा योग्य एवं यथा सम्भव सहयोग करके लाभान्वित हों।

प्रस्तुत रामकथा ”रामायण” में समस्त अच्छाइयाँ पूज्य संतों एवं लेखकों की हैं और समस्त त्रुटियाँ मेरी। सभी संभावित त्रुटियों के लिये मेरा कोटि-कोटि क्षमा-याचन।

‘‘नहीं प्रशंसा सरल की, और नहीं सम्मान। त्रुटियाँ यदि कोई रहे, क्षमा कीजिये दान।।’’

इन्हीं शब्दों के साथ सभी राम भक्तों को पुनः नमन।

हमारा पंजीयन राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम के अन्तर्गत दिनांक 27.04.2009 को हुआ था।

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