सृष्टि के सृजन के साथ ही जैन धर्म के बीज ने बृह्माण्ड में अपना स्थान बना लिया था, जिस के अंकरिंत होने के बाद आज समूचे विश्व में यह धर्म अपने उपदेशों, सिद्धान्तों, और संदेशों के प्रचार प्रसार के कारण कोने कोने तक पहुँच कर अनेक विषाल वट-वृक्षों का रूप ले चुका है। भगवान आदिनाथ से भगवान महावीर तक सभी 24 तीर्थ®करों ने अपने अपने समय में त्याग, तपस्या, सत्य, अहिंसा के उपदेशों से सबको अवगत कराया। उनके उपदेशों एवं कार्यो से समस्त प्राणीयों का अन्तर्मन अनादिकाल से लाभान्वित रहा है। और आगे भी चिरकाल तक आलौकित रहेगा। सभी 24 भगवान का एक साथ स्मरण तथा अनुसरण, जन साधारण को परम ध्येय अर्थात मोक्ष के मार्ग पर ले जायेगा, इसमें संदेह नहीं।
सरल रामायण ट्रस्ट की ओर से प्रस्तुत सरल जिन-वन्दना नामक इस काव्य रचना में उन सभी चौबीस तीर्थोंकरों के माता-पिता का नाम, जन्मतिथि, जन्म एवं मोक्ष स्थान, प्रतीक चिन्ह तथा उनसे सम्बंधित सभी प्रसंगों को एक ही माला में पिरोने का पहली बार अद्भुत प्रयास किया गया है। और यह विलक्षण कार्य किया है प्रसिद्ध महाकाव्य सरल रामायण के रचनाकार एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा. कैलाश परवाल ”सरल” ने इस पावन जिन काव्य को अपनी स्वर साधना से सज्जित किया है। गीत संगीत की सुप्रसिद्ध जोड़ी, डॉ. गौरव जैन व दीपशिखा जैन ने। और इसी विख्यात जोड़ी ने इसे संगीतबद्ध भी किया है। प्रस्तुत है अरिहन्तों के साथ साथ जैन धर्म के गुणगान में यह अनुपम ज्ञानामृत धारा, जिसके नियमित रसपान से भक्तों के आध्यात्मिक लाभ में निश्चित ही वृद्ध होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।