काव्य की रचना करते समय ज्ञान, कर्म और भक्ति का पूर्णतः ध्यान में रखा गया है पाठकों की रूचि को ध्यान में रखकर ही श्लोकों और दोहों की रचना काव्यबद्ध रूप में किया गया। सभी वर्गों के पाठकों की रूचि का इसमें ध्यान रखा गया है।
भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से प्रकटी सुपावन गीता के उक्त शब्दों का भाव यह है कि जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और पाप बढ़ता है तब तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में धर्म की पुनः स्थापना के लिये अवतार लेते हैं।
सत्य को नारायण विष्णु जी के रूप में पूजना ही सत्यनारायण भगवान की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र भगवान नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से भगवान का सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है।