काव्य की रचना करते समय ज्ञान, कर्म और भक्ति का पूर्णतः ध्यान में रखा गया है पाठकों की रूचि को ध्यान में रखकर ही श्लोकों और दोहों की रचना काव्यबद्ध रूप में किया गया। सभी वर्गों के पाठकों की रूचि का इसमें ध्यान रखा गया है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम युगों-युगों से जन-मानस में रचे बसे हैं। प्रभु श्रीराम की महिमा का गान महादेव शिव से लेकर जन-सामान्य तक एवं तब से आज तक, सभी के मन में एक नई शक्ति, नई ऊर्जा एवं नई चेतना का संचार करता रहा है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘साकेत’ में लिखा हैः-
भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से प्रकटी सुपावन गीता के उक्त शब्दों का भाव यह है कि जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और पाप बढ़ता है तब तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में धर्म की पुनः स्थापना के लिये अवतार लेते हैं।
सत्य को नारायण विष्णु जी के रूप में पूजना ही सत्यनारायण भगवान की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र भगवान नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से भगवान का सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है।